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बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश - आरबीआई - Reserve Bank of India

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बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश

आरबीआई/2014-2015/409
डीबीआर.सं.एफएसडी.बीसी.62/24.01.018/2014-15

15 जनवरी 2015

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक
(क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर)

महोदय/महोदया,

बीमा कारोबार में बैंकों का प्रवेश

कृपया 9 अगस्त 2000 का हमारा परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.16/24.01.018/2000-2001 देखें, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ भारत सरकार की अधिसूचना के परिणाम स्वरूप बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 6(1)(ण) के अधीन 'बीमा' को बैंकों द्वारा किए जा सकने वाले अनुमत कारोबार के रूप में विनिर्दिष्ट करते हुए, बैंकों को जोखिम सहभागिता आधार पर बीमा संयुक्त उद्यम स्थापित करने की अनुमति दी गई थी। साथ ही, बैंकों और उनकी सहायक कंपनियों को किसी जोखिम सहभागिता के बिना शुल्क आधार पर बीमा कंपनियों के एजेंट के रूप में बीमा व्यवसाय करने की भी अनुमति दी गई थी। उसके बाद, 22 सितंबर 2003 के हमारे परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.27/24.01.018/2003-2004 के द्वारा बैंकों को निर्दिष्ट क्रियाकलाप करने की भी अनुमति दी गई थी।

2. बैंक शाखाओं के संपूर्ण नेटवर्क का प्रयोग करके बीमा की पैठ बढ़ाने के उद्देश्य से वित्तमंत्री ने 2013-14 के बजट भाषण में यह घोषणा की थी कि बैंकों को बीमा दलालों (ब्रोकरों) के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जाएगी। उक्त घोषणा के परिणामस्वरूप, आईआरडीए ने बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (बैंकों को बीमा ब्रोकर के रूप में लाइसेंस देना) विनियमावली, 2013 को बनाया और अधिसूचित किया, ताकि बैंक विभागीय रूप से बीमा ब्रोकिंग का कारोबार कर सकें। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी ‘बैंकों' का बीमा कारोबार में प्रवेश – बीमा दलाली व्यवसाय से संबंधित दिशानिर्देशों का प्रारूप 29 नवंबर 2013 को जनता की टिप्पणियों के लिए जारी किया। उक्त दिशानिर्देशों के प्रारूप पर विभिन्न हितधारकों से प्राप्त टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए अब उक्त दिशानिर्देशों को अंतिम रूप दे दिया गया है।

3. तदनुसार, बैंकों द्वारा किए जाने वाले बीमा कारोबार से संबंधित विद्यमान अनुदेशों की समीक्षा की गई। यह सूचित किया जाता है कि बैंक अनुबंध में दी गई शर्तों के अधीन एक सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम स्थापित करके बीमा कारोबार कर सकते हैं तथा विभागीय रूप से या सहायक कंपनी के माध्यम से बीमा ब्रोकिंग/बीमा एजेंसी का कार्य कर सकते हैं। तथापि, यह नोट किया जाए कि यदि कोई बैंक या सहायक कंपनियों सहित उसकी समूह संस्थाएं ब्रोकिंग अथवा कॉर्पोरेट एजेंसी विधि के माध्यम से बीमा वितरण का कार्य करती हैं, तो बैंक/अन्य समूह संस्थाओं को बीमा वितरण क्रियाकलाप करने की अनुमति नहीं दी जाएगी; अर्थात समूह की केवल एक संस्था ऊपर उल्लिखित दो विधियों मे से किसी एक विधि से बीमा वितरण का कार्य कर सकती है।

4. i) जोखिम सहभागिता के साथ बीमा कारोबार करने के लिए सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम स्थापित करने वाले बैंक

बैंकों को विभागीय रूप से जोखिम सहभागिता के साथ बीमा कारोबार करने की अनुमति नहीं है तथा वे केवल इस प्रयोजन के लिए स्थापित सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम के माध्यम से ही ऐसा कर सकते हैं। नीचे दिए गए पात्रता मानदंडों (पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार) को पूरा करनेवाले बैंक जोखिम सहभागिता के साथ बीमा कारोबार करने के लिए सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम स्थापित करने हेतु भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क कर सकते हैं :

  1. बैंक की निवल मालियत 1000 करोड़ रुपये से कम नहीं होनी चाहिए ;

  2. बैंक का जोखिम भारित आस्तियों की तुलना में पूंजी अनुपात (सीआरएआर) 10 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए ;

  3. अनर्जक आस्तियों का स्तर 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए ;

  4. बैंक ने लगातार पिछले तीन वर्षों में निवल लाभ कमाया हो;

  5. संबंधित बैंक की सहायक कंपनियों, यदि कोई हों,के कार्यनिष्पादन का पिछला रिकॉर्ड संतोषजनक होना चाहिए।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदन देते समय बैंक के क्रियाकलापों, जैसे कॉर्पोरेट गवर्नेंस, जोखिम प्रबंधन आदि के विभिन्न पहलुओं में विनियामक और पर्यवेक्षी सहजता को भी विचार में लिया जाएगा।

यह नोट किया जाए कि सामान्यतः किसी एक बैंक की सहायक कंपनी और किसी अन्य बैंक को जोखिम सहभागिता आधार पर बीमा कंपनी की इक्विटी में अंशदान करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

यह भी सुनिश्चित किया जाए कि बीमा कारोबार मे निहित जोखिम बैंक को अंतरित नहीं किए जाते हैं, और यह कि बीमा कारोबार से उत्पन्न जोखिमों से बैंकिंग कारोबार संक्रमित नहीं होता है। बैंक और बीमा संस्थान के बीच संबंध ‘एक हाथ की दूरी‘ पर होना चाहिए।

ii) सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम के माध्यम से बीमा ब्रोकिंग/कॉर्पोरेट एजेंसी का कार्य करने वाले बैंक

बैंकों को सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम की स्थापना के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्वानुमोदन लेना आवश्यक होगा। तदनुसार, बीमा ब्रोकिंग/कॉर्पोरेट एजेंसी के लिए सहायक कंपनी की स्थापना करने के इच्छुक तथा नीचे दिए गए पात्रता मानदंडों (पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार) को पूरा करने वाले बैंक ऐसी सहायक कंपनी/संयुक्त उद्यम स्थापित करने हेतु अनुमोदन के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क कर सकते हैं :

  1. ऐसी कंपनी में निवेश करने के बाद बैंक की निवल मालियत 500 करोड़ रुपये से कम न हो,

  2. बैंक का सीआरएआर 10 प्रतिशत से कम न हो;

  3. अनर्जक आस्तियों का स्तर 3 प्रतिशत से अधिक न हो;

  4. बैंक ने पिछले तीन वर्षों में लगातार निवल लाभ अर्जित किया हो;

  5. संबंधित बैंक की सहायक कंपनियों, यदि कोई हों, के कार्यनिष्पादन का पिछला रिकॉर्ड संतोषजनक हो।

अब तक की तरह, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदन देते समय बैंक के क्रियाकलापों, जैसे कॉर्पोरेट गवर्नेंस, जोखिम प्रबंधन आदि के विभिन्न पहलुओं में विनियामक और पर्यवेक्षी सहजता को भी विचार में लिया जाएगा।

5. विभागीय रूप से कॉर्पोरेट एजेंसी क्रियाकलाप/ब्रोकिंग कार्य करने वाले बैंक

बैंकों को शुल्क के आधारपर कॉर्पोरेट एजेंट के रूप में जोखिम सहभागिता के बिना/विभागीय रूप से बीमा ब्रोकिंग कार्यकलाप करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से पूर्वानुमोदन लेने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते कि आईआरडीए विनियमावली, तथा अनुबंध में दी गई शर्तों का अनुपालन किया गया हो।

6. निर्दिष्ट सेवाओं का कार्य करने वाले बैंक

आईआरडीए (बीमा उत्पादों के वितरण हेतु डेटाबेस शेयर करना) विनियमावली, 2010 के अनुसार वर्तमान में कोई भी बैंक निर्दिष्ट बीमा कारोबार करने के लिए पात्र नहीं है।

7. इस परिपत्र में निहित अनुदेशों को ध्यान में रखते हुए हम सूचित करते हैं कि बीमा कारोबार मे बैंकों का प्रवेश विषय पर 09 अगस्त 2000 के हमारे परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.16/24.01.018/2000-2001 तथा 22 सितंबर 2003 के परिपत्र बैंपविवि.सं.एफएससी.बीसी.27/24.01.018/2003-04 में दिए गए निर्देशों को को वापिस लिया जाता है।

भवदीय,

(सुदर्शन सेन)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध

बीमा ब्रोकिंग और एजेंसी कारोबार करने वाले बैंकों के लिए दिशानिर्देश

बैंक निम्नलिखित शर्तों के अधीन विभागीय और/अथवा सहायक संस्था के माध्यम से बीमा एजेंसी अथवा ब्रोकिंग का कारोबार कर सकते हैं :

1. निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित नीति

बीमा वितरण कारोबार, चाहे यह एजेंसी के रूप में हो या ब्रोकिंग माडल के रूप में, प्रारंभ करने के लिए निदेशक मंडल के अनुमोदन से एक व्यापक नीति तैयार की जानी चाहिए तथा इसी नीति के अनुसार ग्राहकों को सेवाओं की पेशकश की जानी चाहिए। उक्त नीति में ग्राहक औचित्य तथा उपयुक्तता के मुद्दों के साथ-साथ शिकायत निवारण को भी शामिल किया जाना चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) के दिशानिर्देश समूह की संस्थाओं को उसी समूह में, यहां तक कि अलग-अलग संस्थाओं के माध्यम से भी, कार्पोरेट एजेंसी लेने और ब्रोकिंग की अनुमति नहीं देते हैं, बैंक और उनके समूह की संस्थाएं या तो बीमा ब्रोकिंग या फिर कार्पोरेट एजेंसी का कारोबार कर सकते हैं।

2. आईआरडीए के दिशा निर्देशों का अनुपालन

क) ऐसा कारोबार करने वाले बैंकों को बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (कार्पोरेट एजेंटों को लाइसेंस दिया जाना) विनियमन, 2002/बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (बैंकों को बीमा ब्रोकरों के रूप में लाइसेंस दिया जाना) विनियमन, 2013 तथा बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण द्वारा निर्धारित आचार संहिता, समय-समय पर संशोधित, यथा लागू, का अनुपालन करना होगा।

ख) बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (बैंकों को बीमा ब्रोकरों के रूप में लाइसेंस दिया जाना) विनियमन, 2013, समय-समय पर संशोधित, के अनुसार बीमा ब्रोकर के रूप में रखी जाने वाली जमाराशि अपने अलावा किसी अन्य अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक में रखनी होगी।

3. ग्राहक औचित्य और उपयुक्तता सुनिश्चित करना

संबंधित आईआरडीए विनियमों के तहत एजेंसी के रूप में अथवा ब्रोकिंग मॉडल के रूप में बीमा वितरण कारोबार करते समय बैंकों को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा :

क) बीमा एजेंसी/ब्रोकिंग कारोबार से जुड़े सभी कर्मचारियों के पास आईआरडीए द्वारा निर्धारित अनिवार्य योग्यता होनी चाहिए।

ख) ग्राहकों के लिए उत्पादों की उपयुक्तता का मूल्यांकन किए जाने की प्रणाली होनी चाहिए। निवेश अथवा वृद्धि घटक रहित विशुद्ध जोखिम आवधिक उत्पाद ग्राहक के लिए सरल और समझने में आसान होते हैं, इनको सर्वत्र उपयुक्त उत्पाद माना जा सकता है। निवेश घटक सहित अधिक जटिलता वाले उत्पादों के मामले में बैंक के लिए जरूरी होगा कि वे बिक्री से पहले ग्राहक की जरूरत का मूल्यांकन अवश्य कर लें। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राहक की जरूरतों के मूल्यांकन हेतु एक मानक प्रणाली हो और इसमें शुरुआती/लेनदेन संबंधी और अनुमोदन की प्रकिया को अलग-अलग रखा गया हो।

ग) बेचे गए बीमा उत्पाद की उपयुक्तता और औचित्यता के संबंध में बैंक को अपने ग्राहकों के साथ उचित, इमानदार और पारदर्शी व्यवहार करना चाहिए।

4. बैंक कर्मचारियों को सीधे ही कमीशन/प्रोत्साहन राशि के भुगतान की मनाही

कमीशन/ब्रोकरेज/प्रोत्साहन राशि के भुगतान में बैंककारी विनियमन अधिनियम,1949 की धारा 10(1)(ii) और आईआरडीए द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। इसे स्टाफ के लिए यथोचित कार्य निष्पादन मूल्यांकन तथा प्रोत्साहन संरचना तैयार करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बीमा कंपनी द्वारा बीमा ब्रोकिंग सेवाओं से जुड़े स्टाफ को किसी भी प्रकार की प्रोत्साहन राशि (नकद या गैर-नकद) का भुगतान न किया जाए।

5. केवाईसी दिशानिर्देशों का अनुपालन

समय–समय पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी, बैंकों पर लागू केवाईसी/एएमएल/सीएफटी से संबंधित अनुदेशों/दिशानिर्देशों को ऐसे ग्राहकों (दोनों मौजूदा तथा अकस्मात) जिनको बीमा ब्रोकिंग/एजेंसी सेवाएं प्रदान की जा रही हैं, पर भी लागू किया जाना चाहिए।

6. पारदर्शिता तथा प्रकटन

क) बैंक को किसी खास बीमा कंपनी के उत्पाद का चयन करने हेतु ग्राहक पर दबाव डालने या बैंकिंग उत्पाद के साथ इस तरह के उत्पाद की बिक्री को संबद्ध करने जैसी किसी भी प्रतिबंधात्मक पद्धति को नहीं अपनाना चाहिए। बैंक द्वारा वितरित की जाने वाली समस्त प्रचार सामग्री में इस बात का प्रमुखता से उल्लेख किया जाना चाहिए कि बैंक के ग्राहक के लिए बीमा उत्पादों की खरीद पूरी तरह से स्वैच्छिक है और इसे बैंक से किसी भी अन्य सुविधा को प्राप्त करने से जोड़ा नहीं गया है।

ख) इसके अलावा, उनके द्वारा किए गए बीमा ब्रोकिंग/एजेंसी कारोबार से प्राप्त शुल्क/ब्रोकरेज के ब्योरे उनके तुलनपत्र के ‘लेखों पर टिप्पणियां’ शीर्ष के अंतर्गत प्रकट किए जाने चाहिए।

7. ग्राहक शिकायत निवारण प्रणाली

प्रदान की जा रही सेवाओं से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित ग्राहक मुआवजा नीति के साथ-साथ एक सुदृढ आंतरिक शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जिन बीमा कंपनियां के उत्पाद बेचे जा रहे हैं उनके यहां भी सुदृढ़ ग्राहक शिकायत निवारण प्रणाली लागू की गई हो। इसके अलावा, बैंक को शिकायतों के निवारण में सहयोग करना चाहिए।

8. दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्रवाई

उपर्युक्त दिशानिर्देशों के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा और इसके लिए बैंकों के खिलाफ कठोर दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

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