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दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा - आरबीआई - Reserve Bank of India

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दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा

भारिबैं/2018-19/203
बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.45/21.04.048/2018-19

07 जून 2019

दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा

परिचय

बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक, इस बात से आश्वस्त होने पर कि ऐसा करना लोकहित में आवश्यक और लाभकारी है, एतद्वारा इसमें इसके बाद विनिर्दिष्ट निदेश जारी करता है।

संक्षिप्त नाम और प्रारंभ

1. इन निदेशों को भारतीय रिज़र्व बैंक (दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए विवेकपूर्ण ढांचा) निदेश, 2019 कहा जाएगा।

2. ये निदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे।

प्रयोज्यता

3. इन निदेशों के प्रावधान निम्नलिखित संस्थाओं पर लागू होंगे:

क) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर);

ख) अखिल भारतीय आवधिक वित्तीय संस्थाएं (नाबार्ड,एनएचबी, एक्ज़िम बैंक तथा सिडबी);

ग) लघु वित्त बैंक;

घ) प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण जमाराशि न लेनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं (एनबीएफ़सी-एनडी-एसआई) और जमाराशि लेनेवाली गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं (एनबीएफ़सी-डी)।

उद्देश्य

4. ये दिशा-निर्देश दबावग्रस्त आस्तियों की प्रारंभिक पहचान, रिपोर्टिंग और समयबद्ध समाधान के लिए एक ढांचा प्रदान करने के दृष्टिकोण से जारी किया जा रहा है।

5. ये दिशानिर्देश भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 35कक के प्रावधानों के अनुसार, बैंकों को विशिष्ट उधारकर्ताओं के खिलाफ दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 (आईबीसी) के तहत दिवाला प्रक्रिया शुरू करने के लिए जारी विशिष्ट निदेश के प्रति किसी पूर्वाग्रह के बिना जारी किए जाते है।

I. दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए ढांचा

क. दबावग्रस्तता की आरंभ में ही पहचान और रिपोर्टिंग

6. ऋणदाता1 चूक2 होते ही निम्नलिखित श्रेणियों के अनुसार दबावग्रस्त आस्तियों को विशेष उल्लेखित खाते (एसएमए) के रूप में वर्गीकृत करके ऋण खातों में आसन्न दबाव की पहचान करेंगे।

एसएमए उप-श्रेणी वर्गीकरण का आधार – मूलधन या ब्याज का भुगतान या कोई अन्य राशि जो पूर्णत: या अंशत: अतिदेय है
एसएमए - 0 1 - 30 दिन
एसएमए - 1 31 – 60 दिन
एसएमए - 2 61 – 90 दिन

7. परिक्रामी ऋण सुविधाओं जैसे-नकदी ऋण के मामले में एसएमए उपश्रेणियाँ इस प्रकार होंगी:

एसएमए उप-श्रेणी वर्गीकरण का आधार – मूलधन या ब्याज का भुगतान या कोई अन्य राशि जो पूर्णत: या अंशत: अतिदेय है
एसएमए - 1 31 – 60 दिन
एसएमए - 2 61 – 90 दिन

8. 22 मई, 2014 को जारी परिपत्र3 सं.बैंपवि.ऑसमोस.14703/33.01.001/2013-14 में निहित अनुदेशों तथा अनुवर्ती संशोधनों में प्रावधान किए गए अनुसार ऋणदाता उनके पास उपलब्ध 50 मिलियन और उससे अधिक समग्र4 एक्सपोज़र वाले सभी उधारकर्ता संस्थाओं की रिपोर्ट बड़े ऋणों की सूचनाओं की सेंट्रल रिपोज़िटरी (सीआरएलआईसी) को देंगे, जिसमें एसएमए के रूप में वर्गीकृत खाते भी शामिल है। सीआरआईएलसी – मुख्य रिपोर्ट मासिक आधार पर प्रस्तुत की जाएगी। साथ ही, ऋणदाता द्वारा सभी उधारकर्ताओं द्वारा की गई चूकों (50 मिलियन तथा उससे अधिक समग्र एक्स्पोज़र वाली) की साप्ताहिक सूचना हर शुक्रवार को, अथवा यदि शुक्रवार छुट्टी का दिन है तो उससे पहले के कार्यदिवस पर सीआरआईएलसी को प्रस्तुत करेंगे।

ख. समाधान योजना का कार्यान्वयन

9. इस ढांचे के अंतर्गत दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए सभी ऋणदाताओं को बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति बनानी चाहिए, जिसमें समाधान हेतु समय सीमा शामिल होगी। चूंकि किसी ऋणदाता के साथ चूक उधारकर्ता के वित्तीय दबाव देर से समझ में आने वाला (लैगिंग) संकेतक है, यह अपेक्षित है कि ऋणदाता चूक से पहले ही संकल्प योजना (आरपी) को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दें। किसी भी स्थिति में, यदि 3 (क), 3 (ख) और 3 (ग) में उल्लिखित ऋणदाताओं में से किसी के द्वारा उधारकर्ता को चूककर्ता सूचित किया जाता है, तो बाकी ऋणदाता ऐसी चूक के तीस दिनों के भीतर ("समीक्षा अवधि") उधारकर्ता के खाते की प्रथम दृष्ट्या समीक्षा करेंगे। तीस दिन की इस समीक्षा अवधि के दौरान, ऋणदाता समाधान रणनीति पर निर्णय लेंगे, जिसमें आरपी की प्रकृति, आरपी के कार्यान्वयन के लिए दृष्टिकोण आदि शामिल हैं। ऋणदाता दिवाला या वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करने का विकल्प भी चुन सकते हैं।

10. जिन मामलों में आरपी कार्यान्वित किया जाना है, उनमें सभी ऋणदाता उपर्युक्त समीक्षा अवधि के दौरान एक अंतर-ऋणदाता समझौता (आईसीए) करेंगे, जिसमें एक से अधिक ऋणदाता5 से ऋण सुविधाएं प्राप्त करने वाले उधारकर्ताओं के संबंध में आरपी को अंतिम रूप देने और कार्यान्वित करने के लिए आधारभूत नियम दिए जाएंगे। आईसीए में यह प्रावधान होगा कि कुल बकाया ऋण सुविधाओं (निधि-आधारित और गैर निधि-आधारित) के मूल्य के अनुसार 75 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करने वाले और संख्या के अनुसार 60 प्रतिशत ऋणदाताओं द्वारा सहमत निर्णय सभी ऋणदाताओं के लिए बाध्यकारी होंगे। इसके अतिरिक्त आईसीए में, अन्य बातों के साथ-साथ, बहुसंख्यक ऋणदाताओं के अधिकार और कर्तव्य, असहमत ऋणदाताओं के कर्तव्य और अधिकारों की सुरक्षा, नकदी प्रवाह/विभेदित प्रतिभूति हित वाले ऋणदाताओं का ट्रीटमेंट आदि के लिए प्रावधान होंगे। विशेष रूप से आरपी में, असहमत ऋणदाताओं के लिए भुगतान, जो परिसमापन मूल्य6 से कम नहीं हो, का प्रावधान होगा।

11. ऋणदाताओं के साथ एक सीमा से अधिक जोखिम वाले खातों के संबंध में, जैसा कि नीचे दिया गया है, "संदर्भ तिथि" के बाद, समीक्षा अवधि के अंत से 180 दिनों के भीतर आरपी लागू किया जाएगा। समीक्षा अवधि की शुरुआत निम्नलिखित के बाद नहीं होगी:

(क) संदर्भ तिथि, यदि संदर्भ तिथि पर चूक में है; या

(ख) संदर्भ तिथि के बाद पहली चूक की तिथि।

12. उपर्युक्त उद्देश्य के लिए संदर्भ तिथियां निम्नानुसार होंगी:

उधारकर्ता के प्रति 3 (क), 3 (ख) और 3 (ग) में उल्लिखित ऋणदाताओं का सकल एक्सपोजर संदर्भ तिथि
रु 20 बिलियन और अधिक इस निदेश की तिथि
रु 15 बिलियन और अधिक, लेकिन रु 20 बिलियन से कम 1 जनवरी 2020
रु 15 बिलियन से कम यथासमय घोषित किया जाएगा

13. समाधान योजना (आरपी) में ऐसी कोई कार्रवाइयां/योजनाएं/पुनर्गठन शामिल हो सकते हैं, जिनमें उधारकर्ता संस्था द्वारा सभी अतिदेय बकाया राशियों का भुगतान करना, अन्य संस्थाओं/निवेशकों को एक्सपोज़र की बिक्री करना, स्वामित्व में परिवर्तन या पुनर्रचना7 शामिल होगी, किंतु इस तक सीमित नहीं होगी। सभी ऋणदाताओं द्वारा समाधान की योजना के संदर्भ में स्पष्ट प्रलेखन किया जाएगा (नियम और शर्तों में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पर भी)।

ग. आरपी के कार्यान्वयन के लिए शर्तें

14. जिन खातों में ऋणदाताओं का समग्र एक्स्पोज़र 1 बिलियन से अधिक है और जिनके आरपी में पुनर्रचना/स्वामित्व में परिवर्तन शामिल है, वहां भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस प्रयोजन के लिए विनिर्दिष्ट रूप से प्राधिकृत क्रेडिट रेटिंग एजंसियों (सीआरए) द्वारा अवशिष्ट ऋण8 का स्वतंत्र ऋण मूल्यांकन (आईसीई) अनिवार्य होगा। 5 बिलियन या उससे अधिक समग्र एक्सपोज़र वाले खातों के लिए ऐसे दो आईसीई तथा अन्य के लिए एक आईसीई अनिवार्य होगा। केवल ऐसे आरपी जो अवशिष्ट ऋण के लिए, एक या दो सीआरए से, जैसा भी मामला हो, से आरपी49 स्तर या उससे बेहतर ऋण संबंधी मत प्राप्त करते हैं, उनके कार्यान्वयन पर विचार किया जाएगा। इसके अतिरिक्त आईसीई निम्नलिखित के अधीन होगी:

(क) ऋणदाताओं द्वारा सीआरए को सीधे नियुक्त किया जाएगा तथा इस कार्य के लिए प्रभार का भुगतान ऋणदाताओं द्वारा किया जाएगा।

(ख) यदि ऋणदाता अपेक्षित से अधिक संख्या में सीआरए से आईसीई प्राप्त करते हैं, तो ऐसे सभी आईसीई मत आरपी4 या बेहतर स्तर के होंगे, तभी आरपी के कार्यान्वयन पर विचार किया जाएगा।

15. ऐसे उधारकर्ता जिनका ऋण एक्स्पोज़र ऋणदाताओं के प्रति जारी रहता है, के सबंध में आरपी को तभी कार्यान्वित माना जाएगा यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हों:

क) जिस आरपी में पुनर्रचना/स्वामित्व में परिवर्तन शामिल नहीं है, उसके सबंध में आरपी को तभी कार्यान्वित माना जाएगा जब उधारकर्ता समीक्षा अवधि की समाप्ती के 180वें दिन किसी भी ऋणदाता के संदर्भ में चूककर्ता नहीं हो। 180 दिन की अवधि के बाद किसी भी चूक को नई चूक माना जाएगा और पुनः समीक्षा की आवश्यता होगी।

ख) जिस आरपी में पुनर्रचना/स्वामित्व में परिवर्तन शामिल है, उसके सबंध में आरपी को तभी कार्यान्वित माना जाएगा जब निम्नलिखित सभी शर्तें पूरी होती हों:

  1. संबंधित ऋणदाता द्वारा कार्यान्वित होने वाले आरपी के अनुसार संबंधित प्रलेखीकरण, जिसमें ऋणदाताओं तथा उधारकर्ताओं के बीच आवश्यक करारों का निष्पादन/सेक्यूरिटी चार्ज का सृजन/प्रतिभूतियों का प्रयोग शामिल हैं, समाप्त कर लिए जाएँ।

  2. सभी ऋणदाताओं और उधारकर्ताओं की बहियों में मौजूदा ऋणों की शर्तों में परिवर्तन तथा/अथवा नया पूंजी ढांचा विधिवत दर्शाया गया है।

  3. उधारकर्ता किसी भी ऋणदाता के साथ चूक में नहीं है।

16. जिस आरपी में ऋणदाता द्वारा तीसरे पक्ष को एक्सपोज़र सौंपकर एक्सपोज़र से बाहर निकालना शामिल है या जिस आरपी में वसूली कार्रवाई शामिल है,उन्हें केवल तभी लागू माना जाएगा जब उधारकर्ता के प्रति एक्सपोज़र पूर्णतः समाप्त हो जाए।

घ. समाधान योजना का विलंबित कार्यान्वयन

17. जहां किसी उधारकर्ता के संबंध में एक व्यवहार्य आरपी, नीचे दी गई समयसीमा के भीतर कार्यान्वित नहीं की जाती है, सभी ऋणदाता निम्नानुसार अतिरिक्त प्रावधान करेंगे:

व्यवहार्य आरपी के कार्यान्वयन के लिए समयसीमा कुल बकाया के % के रूप में किए जाने के लिए अतिरिक्त प्रावधान, यदि आरपी समयसीमा के भीतर कार्यान्वित नहीं होती
समीक्षा अवधि के अंत से 180 दिन 20%
समीक्षा अवधि की शुरुआत से 365 दिन 15% (यानी कुल अतिरिक्त प्रावधान 35%)

18. यह अतिरिक्त प्रावधान निम्नलिखित में से उच्चतर के अतिरिक्त होगा, और कुल धारित प्रावधानों की अधिकतम सीमा कुल बकाया के 100% तक रखे जाने के अधीन होगी:

(क) पहले से धारित प्रावधान; या,

(ख) उधारकर्ता खाते की आस्ति वर्गीकरण स्थिति के अनुसार अपेक्षित प्रावधान।

19. ये अतिरिक्त प्रावधान उन सभी ऋणदाताओं द्वारा रखे जाएंगे जिनका ऐसे उधारकर्ताओं पर एक्सपोज़र हो।

20. उन मामलों में भी, जहां ऋणदाताओं ने वसूली की कार्रवाई शुरू की है, अतिरिक्त प्रावधान किए जाने की आवश्यकता होगी, जब तक कि वसूली की कार्रवाई पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाती।

21. उपरोक्त अतिरिक्त प्रावधान निम्नानुसार वापस हो सकते हैं:

(क) जहां आरपी में उधारकर्ता द्वारा केवल अतिदेय का भुगतान शामिल है - अतिरिक्त प्रावधान केवल तभी वापस किए जा सकते हैं जब उधारकर्ता अतिदेय का निपटान करने की तारीख से 6 महीने की अवधि तक के लिए किसी भी ऋणदाता के साथ चूक में नहीं है;

(ख) जहां आरपी में आईबीसी के बाहर स्वामित्व में पुनर्गठन/परिवर्तन शामिल है - अतिरिक्त प्रावधान आरपी के कार्यान्वयन पर वापस किए जा सकते हैं;

(ग) जहां आईबीसी के तहत समाधान किया जाता है - अतिरिक्त प्रावधानों में से आधे को दिवाला आवेदन फाइल करने पर वापस किया जा सकता है और शेष अतिरिक्त प्रावधान को आईबीसी के तहत दिवाला समाधान प्रक्रिया में उधारकर्ता के प्रवेश करने पर वापस किया जा सकता है; या,

(घ) जहां ऋण/वसूली को असाइन करने की शुरुआत की गई है - ऋण/वसूली को असाइन कर दिए जाने पर अतिरिक्त प्रावधान वापस किए जा सकते हैं।

ङ. विवेकपूर्ण मानदंड

22. किसी भी पुनर्रचना के लिए लागू संशोधित विवेकपूर्ण मानदंड, चाहे आईबीसी ढांचे के तहत हो या आईबीसी के बाहर, अनुबंध-110 में निहित हैं।

II. पर्यवेक्षी समीक्षा

23. ऋणदाता द्वारा निर्धारित समयसीमा का पालन करने में कोई भी विफलता या खातों की वास्तविक स्थिति छिपाने या दबावग्रस्त खातों को बेहतर दिखाने के इरादे से किए गए किसी भी कार्य पर रिज़र्व बैंक द्वारा उचित समझी जाने वाली सख्त पर्यवेक्षी/प्रवर्तन कार्रवाई की जाएगी, जिसमें ऐसे खातों पर उच्च प्रावधानीकरण और मौद्रिक दंड शामिल होंगे, लेकिन केवल इन तक सीमित नहीं होंगे।11

III. प्रकटीकरण

24. ऋणदाता कार्यान्वित की गई समाधान योजनाओं के संबंध में अपने वित्तीय विवरण में, "लेखा पर टिप्पणी" के अंतर्गत उचित प्रकटीकरण करेंगे।

IV. अपवाद

25. जिन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में वाणिज्यिक परिचालन के आरंभ की तिथि (डीसीसीओ) का स्थगन शामिल है, उनकी पुनर्रचना 'आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड' पर दिनांक 1 जुलाई, 2015 के मास्टर परिपत्र बैंविवि सं. बीपी.बीसी.2/21.04.048/2015-16 के पैरा 4.2.15 में निहित दिशानिर्देशों के अनुसार होगी।

26. इस ढांचे की धारा I(ख), I(ग) और I(घ), समय-समय पर संशोधित दिनांक 17 मार्च 2016 के परिपत्र सं.एफ़आईडीडी.एमएसएमई & एनएफ़एस.बीसी.सं 21/06.02.31/2015-16 में निहित अनुदेशों के अंतर्गत आने वाले एमएसएमई के पुनरुद्धार और पुनर्वास पर लागू नहीं होंगी। इस ढांचे की धारा I(ङ) 1 जनवरी, 2019 के परिपत्र बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.18/21.04.048/2018-19 के प्रावधानों की अवमानना में नहीं होगी।

27. प्राकृतिक आपदा की स्थिति में ऋणों का पुनर्गठन, आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान सहित, मौजूदा अनुदेशों के अनुसार निर्देशित होते रहेंगे।

28. उन उधारकर्ता संस्थाओं के लिए यह ढांचा उपलब्ध नहीं होगा, जिनके संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा पहले ही आईबीसी के तहत दिवाला कार्रवाई शुरू करने के लिए बैंकों को विशिष्ट निर्देश जारी किए गए हैं या जारी किए जा रहे हैं। ऋणदाता इस तरह के मामलों को उन्हें जारी किए गए विशिष्ट निर्देशों के अनुसार आगे बढ़ाएंगे।

V. वर्तमान अनुदेशों को वापस लेना

29. दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान हेतु वर्तमान अनुदेश जैसे कि दबावग्रस्त आस्तियों के पुनरुद्धार संबंधी ढांचा, कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना योजना, मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना ऋणों की लचीली संरचना, कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना (एसडीआर), एसडीआर से बाहर स्वामित्व में परिवर्तन, और दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना (एस4ए) तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाते हैं। तदनुसार, दबावग्रस्त खातों के समाधान हेतु संस्थागत तंत्र के रूप में संयुक्त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) भी बंद किया जाता है।

30. निरस्त परिपत्रों/निदेशों/दिशानिर्देशों की सूची अनुबंध-3 में दी गई है।

31. ऋणदाता किसी भी उधारकर्ता के संबंध में 2 अप्रैल, 2019 के अनुसार रखे गए प्रावधानों को वापस नहीं करेंगे, जब तक कि इस परिपत्र के निर्देशों का पालन करते हुए आस्ति वर्गीकरण में उन्नयन या वसूली या सामाधान का परिणाम न आ जाए। इस परिपत्र की तिथि को विचाराधीन किसी आरपी पर ऋणदाताओं द्वारा इस संशोधित ढांचे के तहत कार्य जारी रखा जा सकता है, लेकिन यह इस ढांचे में निर्दिष्ट आवश्यकताओं/शर्तों को पूरा करने के अधीन होगा।

भवदीय,

(सौरभ सिन्हा)
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक


अनुबंध – 1

पुनर्रचना पर लागू विवेकपूर्ण मानदंड

1. पुनर्रचना वह कृत्य है जिसमें कोई ऋणदाता, उधारकर्ता की वित्तीय कठिनाइयों से संबंधित आर्थिक या विधिक कारणों से, उधारकर्ता को रियायतें देता है। सामान्य तौर पर पुनर्रचना में अग्रिम/प्रतिभूति की शर्तों में संशोधन किया जाता है, जिसमें सामान्यतः, अन्य के साथ-साथ; चुकौती अवधि में परिवर्तन/चुकाई जाने वाली राशि/किश्त की राशि/ब्याज दर/ऋण सुविधाओं का रोल ओवर/अतिरिक्त ऋण सुविधा की स्वीकृति/मौजूदा ऋण सीमा में वृद्धि/समझौता निपटान जहां निपटान राशि के भुगतान में तीन महीने से अधिक समय हो, शामिल होते हैं।

2. इस प्रयोजन के लिए, इस ढाँचे के अनुसार दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान पर ऋणदाताओं के बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति में वित्तीय कठिनाई के विभिन्न संकेतों पर विस्तृत नीतियाँ भी होंगी, जिसमें एक विवेकपूर्ण बैंक से की गई अपेक्षा के अनुसार, वित्तीय कठिनाई का निर्धारण करने के लिए मात्रात्मक और गुणात्मक मापदंड दिए गए होंगे। वित्तीय कठिनाई के निर्धारण से संबंधित नीति तैयार करने में ऋणदाताओं की सहायता के लिए, वित्तीय कठिनाई के संकेतों की एक संकेतक सूची नीचे दी गई है:12

(क) ढांचे में दी गई परिभाषा के अनुसार कोई भी चूक, वित्तीय कठिनाई के संकेतक के रूप में मानी जानी चाहिए, चाहे चूक किसी भी कारण से हुई हो।

(ख) उधारकर्ता ने चूक नहीं की है, लेकिन यह संभावना है कि उधारकर्ता रियायत के बिना निकट भविष्य में अपने किसी एक्सपोजर पर भविष्य में चूक जाएगा, उदाहरण के लिए, जब उसके एक्सपोजर पर भुगतान में देरी का एक पैटर्न रहा हो।

(ग) किसी उधारकर्ता की बकाया प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध होने की अपेक्षा पूरी न करने के कारण या वित्तीय कारणों से किसी एक्सचेंज की सूची से हटा दिया गया है, हटाए जाने की प्रक्रिया में है या हटाए जाने का खतरा है।

(घ) उधारकर्ता के वर्तमान परिचालन के स्तर को देखते हुए वास्तविक प्रदर्शन, आकलन और पूर्वानुमान के आधार पर उधारकर्ता के नकदी प्रवाह के मूल्यांकन से पता चलता है कि यह मौजूदा समझौते की संविदात्मक शर्तों के अनुसार निकट भविष्य में उसके सभी ऋणों या ऋण प्रतिभूतियों (ब्याज और मूलधन) का भुगतान करने के लिए अपर्याप्त है।

(ङ) उधारकर्ता की ऋण सुविधाएं अनर्जक स्थिति में हैं या रियायतों के बिना अनर्जक के रूप में वर्गीकृत किए जाएंगे।

(च) एक उधारकर्ता के मौजूदा एक्सपोज़र को ऐसे एक्सपोज़र के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो पहले से ही बैंक की आंतरिक क्रेडिट रेटिंग प्रणाली के अनुसार उधारकर्ता की चुकौती क्षमता में समस्या दर्शा चुका हो।

3. यह सूची वित्तीय कठिनाई के संभावित संकेतकों के उदाहरण देती है, लेकिन इसका उद्देश्य पुनर्रचना से संबंधित मामलों में वित्तीय कठिनाई के संकेतकों की विस्तृत सूची प्रदान करना नहीं है। ऋणदाताओं को उपर्युक्त के प्रमुख वित्तीय अनुपात और परिचालन मापदंडों को पूरक के तौर पर देखने की आवश्यकता होगी जिसमें मात्रात्मक और गुणात्मक पहलू शामिल होंगे। विशेष रूप से, वित्तीय कठिनाई को एक्सपोजर पर बकाया के बिना भी पहचाना जा सकता है। बोर्ड की अनुमोदित नीति और परिणामों की दृढ़ता की जाँच रिज़र्व बैंक के पर्यवेक्षी निरीक्षण के भाग के रूप में की जाएगी।

I. विवेकपूर्ण मानदंड13

क. आस्ति वर्गीकरण

4. पुनर्रचना के मामले में, "मानक" के रूप में वर्गीकृत खाते को तत्काल अनर्जक आस्ति (एनपीए) के रूप में अवक्रमित कर दिया जाएगा, अर्थात, आरंभ में "अवमानक" खाते के रूप में। पुनर्रचना हो जाने पर, अनर्जक आस्तियों का वही वर्गीकरण जारी रहेगा, जो पुनर्रचना के पहले था। दोनों मामलों में, आस्ति वर्गीकरण मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों के अनुसार अवधि-संबंधी मानदंडों से अधिशासित होता रहेगा।

ख. उन्नयन के लिए शर्तें

5. एनपीए के रूप में वर्गीकृत मानक खाते और ऋणदाताओं द्वारा पुनर्रचना पर एनपीए श्रेणी में बरकरार रखे गए खाते तभी उन्नयित किए जाएँ जब खाते में सभी बकाया ऋण/सुविधाएं निम्न अवधि तक "संतोषजनक निष्पादन"14 दर्शा रही हों- आरपी के कार्यान्वयन की तिथि से लेकर आरपी के अनुसार बकाया मूलधन15 के 10% और पुनर्रचना के भाग के रूप में स्वीकृत ब्याज पूंजीकरण, यदि कोई हो, की चुकौती (मॉनिटरिंग अवधि) तक।

बशर्ते कि आरपी की शर्तों के अंतर्गत ऋणस्थगन की अधिकतम अवधि वाली ऋण सुविधा के मूलधन या ब्याज के पहले भुगतान (जो भी बाद में हो) के आरंभ से एक वर्ष से पहले खाते का उन्नयन नहीं किया जा सकता।

6. इसके अलावा, ऐसे खाते जहां ऋणदाताओं का सकल एक्सपोजर आरपी के कार्यान्वयन के समय 1 बिलियन रुपए या उससे अधिक है, के उन्नयन हेतु पात्र होने के लिए संतोषजनक कार्यनिष्पादन दर्शाने के अतिरिक्त रिज़र्व बैंक द्वारा बैंक ऋण रेटिंग के लिए मान्यता प्राप्त क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (सीआरए) द्वारा उन्नयन के समय निवेश श्रेणी16 (बीबीबी- या उससे बेहतर) में रेटिंग की आवश्यकता होगी । जहां 5 बिलियन रुपये या उससे अधिक के सकल एक्सपोजर के लिए दो रेटिंग आवश्यक होंगी, वहीं 5 बिलियन रुपये से कम के लिए एक रेटिंग अपेक्षित होगी। यदि अपेक्षित संख्या से अधिक सीआरए से रेटिंग प्राप्त की गई हो, तो ऐसी सभी रेटिंग उन्नयन की पात्रता के लिए निवेश श्रेणी होनी चाहिए।

7. यदि मॉनिटरिंग अवधि में संतोषजनक कार्यनिष्पादन नहीं दर्शाया गया हो, तो आस्ति गुणवत्ता वर्गीकरण में उन्नयन इस ढांचे या आईबीसी के तहत नई पुनर्रचना/स्वामित्व में परिवर्तन के कार्यान्वयन के अधीन होगा। ऋणदाता ऐसे खातों के लिए समीक्षा अवधि के अंत में 15% का अतिरिक्त प्रावधान करेंगे। यह अतिरिक्त प्रावधान, अन्य अतिरिक्त प्रावधानों के साथ, कवरिंग परिपत्र के पैरा 21 में निर्धारित मानकों के अनुसार वापस किया जा सकता है।

8. खातों को मानक श्रेणी में अपग्रेड किए जाने पर पुनर्रचित आस्तियों पर धारित प्रावधान वापस किए जा सकते हैं।

9. उपर्युक्त के अनुसार आस्ति गुणवत्ता में उन्नयन लेकिन विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति से पहले उधारकर्ता द्वारा किसी भी ऋणदाता की किसी भी ऋण सुविधा में चूक होने पर (ऐसे ऋणदाता के लिए भी, जहां उधारकर्ता विनिर्दिष्ट अवधि में नहीं है), उस चूक के अनुसार नया आरपी कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता होगी। ऋणदाता ऐसे खातों के लिए समीक्षा अवधि के अंत में 15% का अतिरिक्त प्रावधान करेंगे। यह अतिरिक्त प्रावधान, अन्य अतिरिक्त प्रावधानों के साथ, कवरिंग परिपत्र के पैरा 21 में निर्धारित मानकों के अनुसार वापस किया जा सकता है।

"विनिर्दिष्ट अवधि का अर्थ है आरपी17 के कार्यान्वयन की तिथि से लेकर आरपी के अनुसार बकाया मूलधन के 20% और पुनर्रचना के भाग के रूप में स्वीकृत ब्याज पूंजीकरण, यदि कोई हो, की चुकौती तक।"

ग. प्रावधानीकरण मानदंड18

10. संशोधित ढांचे के अंतर्गत पुनर्रचित खातों पर अग्रिमों के संबंध में आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण तथा प्रावधानीकरण पर विवेकपूर्ण मानदंड पर 01 जुलाई 2015 के मास्टर परिपत्र, समय समय पर यथासंशोधित, में निर्धारित आस्ति वर्गीकरण श्रेणी के अनुसार प्रावधानीकरण लागू होगा।

11. जिन मामलों में ऋणदाताओं की समिति द्वारा अनुमोदित किया गया समापक आरपी, समाधान व्यवसायी द्वारा न्यायनिर्णय प्राधिकारी (आईबीसी की धारा 30 (6) के संदर्भ में) के अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया गया है, उनके खातों के संबंध में ऋणदाता आरपी प्रस्तुत करने की तिथि से छह महीने की अवधि के लिए या आईबीसी की धारा 31(1) के अनुसार न्यायनिर्णय प्राधिकारी द्वारा समाधान योजना के अनुमोदन की तिथि से 90 दिनों तक,जो भी पहले हो, आरपी प्रस्तुत करने की तिथि पर धारित प्रावधानों को फ्रीज़ रख सकते हैं।

12. प्रावधान की मात्रा को फ्रीज़ करने की उक्त सुविधा केवल उन्हीं मामलों में उपलब्ध होगी जहां ऋणदाताओं द्वारा न्यायनिर्णय प्राधिकारी की स्वीकृति के लिए योजना प्रस्तुत करने की तिथि पर ऋणदाता द्वारा धारित प्रावधान, अनुमोदित समाधान योजना के कार्यान्वयन पर सामान्यतः अपेक्षित प्रावधान से अधिक है,और इसमें ऋणदाताओं की समिति/न्यायनिर्णय प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित समाधान योजना, जैसा भी मामला हो, के पहलुओं को और मौजूदा विवेकपूर्ण मानकों को ध्यान में रखना होगा। तथापि, ऋणदाता इस स्तर पर न्यायनिर्णय प्राधिकारी के अनुमोदन के लिए समाधान योजना प्रस्तुत करने की तिथि पर धारित अतिरिक्त प्रावधानों की वापसी नहीं करेंगे। जिन मामलों में किया गया प्रावधान अपेक्षित प्रावधान से कम है, ऋणदाता कमी की सीमा तक अतिरिक्त प्रावधान करेंगे। उपर्युक्त अवधि की समाप्ति के बाद, ये प्रावधान 1 जुलाई, 2015 के मास्टर परिपत्र - आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधान पर विवेकपूर्ण मानदंड (समय-समय पर संशोधित), में दिए गए मानदंडों के अनुसार होगा। यदि न्यायनिर्णय प्राधिकारी इस प्रकार प्रस्तुत समाधान योजना को अस्वीकृत कर देते हैं तो प्रावधानों को फ्रीज़ करने की सुविधा भी तुरंत समाप्त हो जाएगी। ऐसे उधारकर्ता के संबंध में आस्ति वर्गीकरण, मौजूदा आस्ति वर्गीकरण मानदंडों द्वारा अधिशासित होगा।

घ. अतिरिक्त वित्त

13. आरपी (आईबीसी के अधीन निर्णायक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किसी समाधान योजना सहित) के अधीन अनुमोदित किसी अतिरिक्त वित्त को विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान अनुमोदित आरपी के अंतर्गत मानक आस्ति माना जाएगा, बशर्ते कि खाता संतोषजनक कार्य निष्पादन करता है (जैसा कि फुटनोट 14 में परिभाषितकिया गया है)। यदि पुनर्रचित खाता विनिर्दिष्ट अवधि के दौरान संतोषजनक कार्य-निष्पादन नहीं करता है या विनिर्दिष्ट अवधि के अंत में उन्नयन के लिए पात्र नहीं होता है, तो अतिरिक्त वित्त को भी पुनर्रचित वित्त के समान आस्ति वर्गीकरण श्रेणी में रखा जाएगा।

14. इसी प्रकार, आईबीसी के तहत ऋणदाताओं द्वारा दिवाला प्रक्रिया के अधीन चल रहे उधारकर्ता को दिया गया अंतरिम वित्त [आईबीसी की धारा 5 (15) में परिभाषित किए गए अनुसार], आईबीसी में परिभाषित किए गए दिवाला समाधान प्रक्रिया के दौरान 'मानक आस्ति' के रूप में माना जा सकता है। इस अवधि के दौरान, अंतरिम वित्त के लिए आस्ति वर्गीकरण और प्रावधान 1 जुलाई, 2015 के मास्टर परिपत्र - आय निर्धारण, आस्ति वर्गीकरण और अग्रिमों से संबंधित प्रावधान पर विवेकपूर्ण मानदंड (समय-समय पर संशोधित) द्वारा अधिशासित होंगे। इसके बाद, न्यायनिर्णय प्राधिकारी द्वारा समाधान योजना के अनुमोदन पर, इस तरह के अंतरिम वित्त का ट्रीटमेंट, उपर्युक्त पैरा 13 में अतिरिक्त वित्तपोषण पर लागू मानकों के अनुसार होगा।

ङ. आय निर्धारण मानदंड

15. मानक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत पुनर्रचित खातों के संबंध में ब्याज आय का निर्धारण उपचित आधार पर किया जाए, तथा अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत पुनर्रचित खातों के संबंध में आय निर्धारण नकद आधार पर किया जाए।

16. ऐसे खातों में अतिरिक्त वित्त के मामले में, जहां पुनर्रचना-पूर्व सुविधाओं को अनर्जक आस्तियों के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जब पुनर्रचना स्वामित्व में परिवर्तन के साथ की गई हो को छोड़ कर, ब्याज आय का निर्धारण केवल नकद आधार पर किया जाएगा।

च. मूलधन का ऋण/इक्विटी में तथा अदत्त ब्याज का निधि आधारित ब्याज मीयादी ऋण (एफआईटीएल), ऋण या इक्विटी लिखतों में परिवर्तन

17. पुनर्रचना की प्रक्रिया में उधारकर्ता द्वारा जारी नई प्रतिभूतियों का निर्माण हो सकता है, जिसे ऋणदाताओं द्वारा पुनर्रचना पूर्व एक्सपोजर के भाग के बदले में धारित किया जाएगा। मूलधन/अदत्त ब्याज, जैसा भी मामला हो, के भाग को परिवर्तित करके बनाए गए एफआईटीएल/ऋण/इक्विटी लिखतों को उसी आस्ति वर्गीकरण श्रेणी में रखा जएगा, जिसमें पुनर्रचित अग्रिमों को वर्गीकृत किया गया है।

18. ऐसी लिखतों पर लागू प्रावधान निम्नलिखित में से उच्चतर वाले होंगे:

(क) उस आस्ति वर्गीकरण श्रेणी पर लागू प्रावधानीकरण जिसमें ऐसी लिखतें रखी जाती हैं; या

(ख) ऐसी लिखतों के उचित मूल्य पर लागू प्रावधानीकरण जैसा कि निम्नलिखित अनुच्छेद में दिया गया है।

19. आरपी के हिस्से के रूप में उधारदाताओं द्वारा अर्जित ऋण/अर्ध-ऋण/इक्विटी लिखत19 निम्नानुसार मूल्यांकित किए जाएंगे:

(क) 1 जुलाई 2015 को बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड विषय पर जारी मास्टर परिपत्र (समय-समय पर संशोधित) के पैरा 3.7.1 में संकलित निदेशों के अनुसार डिबेंचर/बॉन्ड के मूल्य को आंका जाएगा।

(ख) आरपी के हिस्से के रूप में शून्य कूपन बॉन्ड (ज़ेडसीबी)/निम्न कूपन बांड (एलसीबी) में ऋण का अंतरण 1 जुलाई 2015 को बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड विषय पर जारी मास्टर परिपत्र (समय-समय पर यथासंशोधित) के पैरा 5.4 में संकलित निदेशों के अनुसार किया जाएगा। इस तरह के ज़ेडसीबी/एलसीबी को उपरोक्त मास्टर परिपत्र के अनुच्छेद 3.7.3 में दिए गए अनुदेशों के अनुसार मूल्यांकित किया जाएगा, जो निम्नलिखित के अधीन है:

  1. जहां उधारकर्ता उक्त मास्टर परिपत्र के तहत आवश्यक ऋण शोधन निधि का निर्माण करने में विफल रहता है, ऐसे उधारकर्ता के ज़ेडसीबी/एलसीबी को समेकित रूप से 1 रुपए पर मूल्यांकित किया जाएगा।

  2. पूर्व-निर्दिष्ट टर्मिनल मूल्य रहित लिखतों का समेकित मूल्य 1 रुपया होगा।

(ग) इक्विटी लिखत, जिन्हें मानक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, को कोट करने पर की हुई होने पर बाजार मूल्य पर मूल्यांकित किया जाएगा, अन्यथा नीचे बताए गए मूल्यांकन पद्धति का उपयोग करके न्यूनतम मूल्य पर मूल्यांकन किया जाए:

  1. बही मूल्य (पुनर्मूल्यन रिज़र्व, यदि कोई हो तो उस पर विचार किए बिना) को कंपनी की नवीनतम लेखापरीक्षित तुलनपत्र से निर्धारित किया जाना है। जिस तारीख के अनुसार नवीनतम तुलनपत्र तैयार किया जाता है, वह मूल्यांकन की तारीख से 18 महीने से पहले नहीं होना चाहिए। यदि नवीनतम लेखापरीक्षित तुलनपत्र उपलब्ध नहीं है, तो शेयर का समेकित रूप से प्रति कंपनी एक रुपए पर मूल्यांकन करना चाहिए।

  2. डिस्काउंटेड नकदी प्रवाह पद्धति, जहां डिस्काउंट फैक्टर पुनर्रचना के बाद अवशिष्ट ऋण के संदर्भ में ग्राहक पर लगाए जाने वाला वास्तविक ब्याज दर है और इक्विटी के मूल्य को प्रभावित करने वाले कारकों पर विचार करते हुए बोर्ड अनुमोदित नीति के अनुसार निर्धारित जोखिम प्रामियम को उसके साथ जोड़ा जाता है। जोखिम प्रीमियम 3 प्रतिशत के न्यूनतम सीमा के अधीन होगा और समग्र डिस्काउंट फैक्टर/14 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा के अधीन होगा। इसके अलावा, नकदी प्रवाह (वर्तमान में उपलब्ध नकदी प्रवाह के साथ-साथ तुरंत संभावित (छह महीने से अधिक नहीं) परिचालन के स्तर) जो परियोजना के उपयोगिता काल के 85 प्रतिशत के भीतर है उसे ही माना जाएगा।

(घ) इक्विटी लिखत, जहां एनपीए के रूप में वर्गीकृत किया गया है, को कोट कई हुई होने पर बाजार मूल्य के आधार पर मूल्यांकित किया जाएगा अन्यथा है, तो उसे समेकित रूप से एक रुपए पर मूल्यांकित किया जाएगा।

(ङ) वरीयता शेयरों को 1 जुलाई 2015 को बैंकों द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड विषय पर जारी मास्टर परिपत्र (समय-समय पर संशोधित) के पैरा 3.7.4 में संकलित अनुदेशों के अनुसार डीसीएफ़ के आधार पर मूल्यांकित किया जाएगा, जो निम्नलिखित संशोधनों के अधीन है:

  1. डिस्काउंट दर पुनर्रचना के बाद अवशिष्ट ऋण पर उधारकर्ता से प्राप्त किए जाने वाले भारित औसत वास्तविक ब्याज दर की न्यूनतम सीमा के अधीन होगी जो 1.5 प्रतिशत के मार्क-अप के बाद का है।

  2. जहां वरीयता लाभांश/कूपन बकाये में हैं, उपार्जित लाभांश/कूपन के लिए कोई क्रेडिट नहीं लिया जाना चाहिए और उक्त के अनुसार डीसीएफ आधार पर मूल्य निर्धारित है और यदि बकाया एक वर्ष है तो कम से कम 15 प्रतिशत अधिक डिस्काउंट दी जानी चाहिए, बकाया दो साल का है तो 25 प्रतिशत बढ़ाया और आगे (यानी, 10 प्रतिशत की वृद्धि के साथ), इसी प्रकार बढ़ाया जाए।

20. सर्वोपरि सिद्धांत यह होना चाहिए कि दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान से उत्पन्न होने वाले लिखतों का मूल्यांकन नकदी प्रवाह के परिमित मूल्यांकन और उपयुक्त डिस्काउंट रेट पर आधारित हो, ताकि उधारकर्ताओं के दबावग्रस्त नकदी प्रवाह को दर्शा सकें। सांविधिक लेखा परीक्षकों को विशेष रूप से इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि क्या इस तरह की लिखतों का मूल्यांकन ऐसी लिखतों से जुड़ी हानि के जोखिम को दर्शाता है।

21. यदि उधारदाताओं ने आरपी के एक हिस्से के रूप में ऋण के रूपांतरण पर कोट न की गई लिखतों का अधिग्रहण किया है और अगर आरपी को कार्यान्वित नहीं माना जाता है, तो जब तक आरपी को लागू नहीं किया जाता है तब तक ऐसी कोट न की गई लिखतों को उस स्थिति में, समेकित रूप से एक रुपए पर मूल्यांकित किया जाएगा।

22. एफआईटीएल/ऋण या इक्विटी लिखत द्वारा दर्शाई गई अप्राप्त आय के लिए खाते में तदनुरूपी जमा होना चाहिए जिसे "फुटकर देयता खाते (ब्याज कैपिटलाइजेशन)" के रूप में बनाया जाना है।

23. एफआईटीएल/ऋण या इक्विटी लिखत द्वारा दर्शाई गई अप्राप्त आय को केवल निम्न के रूप में लाभ और हानि लेखे में ही निर्धारित किया जा सकता है:

(क) एफआईटीएल/ऋण लिखत: केवल बिक्री या मोचन पर, जैसा भी मामला हो;

(ख) असूचीबद्ध इक्विटी/सूचीबद्ध इक्विटी (जहां एनपीए के रूप में वर्गीकृत): केवल बिक्री पर;

(ग) सूचीबद्ध इक्विटी (जहां मानक के रूप में वर्गीकृत किया गया है): उन्नयन की तारीख के अनुसार इक्विटी का बाजार मूल्य, जो इस तरह की इक्विटी में परिवर्तित अप्राप्य आय की मात्रा से अधिक नहीं हो। बाद में इक्विटी के मूल्य में होने वाले परिवर्तन को बैंकों के निवेश पोर्टफोलियो पर जारी मौजूदा विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार किया जाएगा।

छ. स्वामित्व में बदलाव

24. उधार लेने वाली संस्थाओं के स्वामित्व में बदलाव के मामले में, स्वामित्व में परिवर्तन लागू होने के बाद संबंधित उधार संस्थाओं की क्रेडिट सुविधाओं को आईबीसी के तहत मानक के रूप में जारी रखा/उन्नत किया जा सकता है। यदि स्वामित्व में परिवर्तन इस ढांचे के तहत लागू किया जाता है, तो ‘मानक’ के रूप में वर्गीकरण निम्नलिखित शर्तों के अधीन होगा:

(क) ऋणदाता इस संबंध में समुचित सावधानी बरतेंगे और स्पष्ट रूप से यह स्थापित करेंगे कि अधिग्रहणकर्ता आईबीसी की धारा 29क के संदर्भ में अयोग्य व्यक्ति नहीं है। इसके अतिरिक्त, मौजूदा प्रमोटर/प्रमोटर समूह से, नए प्रमोटर का संबंध एक व्यक्ति/इकाई/सहायक/सहयोगी आदि (घरेलू और साथ ही विदेशी) नहीं होना चाहिए। ऋणदाताओं को स्पष्ट रूप से स्थापित करना चाहिए कि अधिग्रहणकर्ता मौजूदा प्रमोटर समूह (जैसा कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड [पूँजी का निर्गमन (इश्यू) और प्रकटीकरण अपेक्षाएँ] विनियम, 2018 में परिभाषित किया गया है) से संबंधित नहीं है।

(ख) नए प्रमोटर द्वारा प्रदत्त इक्विटी पूंजी का कम से कम 26 प्रतिशत अधिग्रहण के साथ उधारकर्ता इकाई में मतदान अधिकारों का अधिग्रहण होना चाहिए और वह उधारकर्ता इकाई का सबसे बड़ा शेयरधारक होगा।

(ग) नया प्रोमोटर कंपनी अधिनियम, 2013/भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा जारी किए गए नियमों/कोई अन्य लागू विनियम/लेखा मानकों के अनुसार, जो भी लागू हो, उधारकर्ता इकाई के 'नियंत्रण' में होगा।

(घ) कवरिंग परिपत्र के खंड 1 – ग के अनुसार आरपी के कार्यान्वयन की शर्तों का अनुपालन किया जाता है।

25. स्वामित्व में परिवर्तन होने पर, उधार लेने वाली इकाई के सभी बकाया ऋण/प्राप्त क्रेडिट सुविधाओं को निगरानी अवधि के दौरान संतोषजनक प्रदर्शन की स्थिति (जैसा कि फुटनोट 14 में परिभाषित किया गया है) में होना आवश्यक है। यदि मॉनिटरिंग अवधि के दौरान खाता किसी भी समय संतोषजनक प्रदर्शन करने में विफल रहता है, तो कवरिंग परिपत्र के अनुच्छेद 9 के अनुसार नई समीक्षा अवधि लागू हो जाएगी।

26. उधारकर्ता कंपनी के स्वामित्व में परिवर्तन की तिथि के अनुसार उक्त खाते पर बैंक द्वारा धारित प्रावधानों की मात्रा (अतिरिक्त प्रावधानों को छोड़कर) की वापसी निगरानी अवधि के बाद ही संभव है बशर्ते कि अवधि के दौरान उनका प्रदर्शन संतोषजनक रहा हो।

II बिक्री और लीज़ बैक लेनदेनों के पुनर्रचना के रूप में वर्गीकरण के लिए सिद्धान्त

27. उधारकर्ता की आस्तियों की बिक्री और लीज़बैक लेनदेन, अथवा उसके समान प्रकृति के अन्य लेनदेनों को बैंक की बहियों में विक्रेता के अवशिष्ट ऋण तथा क्रेता के ऋण के संबंध में आस्ति वर्गीकरण और प्रावधानीकरण के प्रयोजन से पुनर्रचना की घटना माना जाएगा, यदि निम्नलिखित सभी शर्तें पूरी की जाती हैं:

क) आस्तियों का विक्रेता वित्तीय कठिनाई में है;

ख) विनिर्दिष्ट आस्तियों से क्रेता की आय का बड़ा भाग, अर्थात् 50 प्रतिशत से अधिक विक्रेता के नकद प्रवाहों पर निर्भर करता है;

ग) विनिर्दिष्ट आस्ति खरीदने के लिए क्रेता द्वारा लिए गए कर्ज के 25 प्रतिशत का निधीयन उन ऋणदाताओं द्वारा किया गया है, जिनका विक्रेता के प्रति पहले से ऋण एक्सपोजर है।

III. उधारकर्ताओं को एक्सपोजरों का पुनर्वित्तीयन करने के संबंध में विवेकपूर्ण मानदंड

28. यदि समान/अन्य करेंसी में ऋण की चुकौती/पुनर्वित्त के प्रयोजन से उधार/निर्यात अग्रिम निम्नलिखित से लिए गए हैं:

क. ऋणदाता, जो भारतीय बैंकिंग प्रणाली का भाग हैं (जहां अनुमत है); अथवा

ख. गारंटियां/स्टैंडबाय साख पत्र/चुकौती आश्वासन पत्र आदि के रूप में भारतीय बैंकिंग प्रणाली से सहायता (जहां अनुमत है) लेकर।

यदि संबंधित उधारकर्ता वित्तीय कठिनाई में है तो ऐसी घटनाओं को पुनर्रचना माना जाएगा।

IV. विनियामकीय छूट

भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियमों से छूट

29. ऋण के रूपांतरण द्वारा गैर एसएलआर प्रतिभूतियों के अजर्न को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित प्रतिबंधों तथा सूची में शामिल नहीं की गई गैर एसएलआर प्रतिभूतियों में निवेश से संबंधित विवेकपूर्ण सीमा में छूट दी गई है।

30. पुनर्रचना प्रक्रिया के दौरान कर्ज को इक्‍विटी में रूपांतरित करने के कारण शेयरों के अधिग्रहण को पूंजी बाज़ार एक्‍सपोज़र, पैरा बैंकिंग गतिविधियों और अंतर समूह एक्‍सपोजर पर विनियामकीय उच्‍चतम सीमा/प्रतिबंध से छूट दी जाएगी। तथापि, इनको भारतीय रिजर्व बैंक को रिपोर्ट किया जाना (प्रतिमाह आस्ति गुणवत्ता पर नियमित डीएसबी विवरणी के साथ डीबीएस, केंद्रीय कार्यालय को रिपोर्ट किया जाना) और बैंकों द्वारा वार्षिक वित्तीय विवरणियों के लेखे पर टिप्पणियां में प्रकटीकरण किया जाना अनिवार्य होगा। हालांकि बैंकों को बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 19(2) के प्रावधानों का पालन करना होगा।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के विनियमों से छूट

31. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी विनियमों के अनुसार की गई पुनर्रचनाओं के लिए सेबी ने, कतिपय शर्तों के अधीन, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) (पूंजी का निर्गमन और प्रकटीकरण अपेक्षाएं) (आईसीडीआर) विनियम, 2018 की अपेक्षाओं से छूट दी है।

32. आईसीडीआर विनियम, 2019 के उप विनियम 158 (6) (क) में निहित अपेक्षाओं के संबंध में, इक्‍विटी का निर्गम मूल्‍य निम्‍नलिखित (क) अथवा (ख) से कम होना चाहिए:

ए) 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के छब्‍बीस सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर संबंधित उद्धृत इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्य का औसत अथवा 'संदर्भ तिथि' से पूर्व के दो सप्ताह के दौरान मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर उद्धृत संबंधित इक्विटी शेयरों के परिमाण भारित औसत मूल्य के साप्ताहिक उच्च और निम्न मूल्‍य का औसत जो भी कम हो; और

बी) बही मूल्‍यः प्रति शेयर बही मूल्‍य की गणना पूर्व की पुनर्रचना के नकदी प्रवाह और वित्‍तीय स्‍थ‍ितियों, यदि कोई हो, के समायोजन के बाद (पुनर्मूल्‍यांकन निधियां यदि कोई हो, पर विचार न करते हुए) लेखापरीक्षित तुलनपत्र से की जाएगी। अद्यतन तुलनपत्र तैयार होने की तारीख पुनर्रचना की तारीख से 18 महीने पहले का नहीं होना चाहिए। यदि तत्काल पूर्ववर्ती वित्त वर्ष से संबंधित लेखापरीक्षित तुलनपत्र उपलब्ध नहीं है, तो शेयर का समेकित मूल्‍य 1 रुपया माना जाएगा।

33. ऋण को इक्‍विटी में रूपांतरित करने के मामले में, ‘संदर्भ तिथि’ बैंक द्वारा पुनर्रचना योजना अनुमोदित करने की तारीख होगी। परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को इक्‍विटी में रूपांतरित करने के मामले में, ‘संदर्भ तिथि’ बैंक द्वारा परिवर्तनीय प्रतिभूतियों को इक्‍विटी में परिवर्तित करने हेतु अनुमोदन करने की तारीख होगी।

IV. धोखाधड़ियों/इरादतन चूककर्ताओं के मामले

34. जिन उधारकर्ताओं ने धोखाधडी/अपराध/इरादतन चूक की है वे पुनर्रचना के लिए अयोग्‍य बने रहेंगे। तथापि, ऐसे मामलों में जहां वर्तमान प्रवर्तकों के स्‍थान पर नये प्रवर्तकों20 को लाया जाता है, और उधारकर्ता कंपनी इस प्रकार के पूर्ववर्ती प्रवर्तकों/प्रबंधन से पूर्णतः असंबद्ध हो जाती है, पूर्ववर्ती प्रवर्तकों/प्रबंधन के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई जारी रखने पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऋणदाता उनकी व्‍यवहार्यता के आधार पर इस तरह के खातों की पुनर्रचना पर विचार कर सकते हैं।


अनुबंध – 2

आईसीई प्रतीक परिभाषा
आर पी 1 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में सुरक्षा का उच्चतम स्तर माना जाता है। ऐसी ऋण सुविधाओं/लिखतों का ऋण जोखिम न्यूनतम होता है|
आर पी 2 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में सुरक्षा का उच्च स्तर माना जाता है। ऐसी ऋण सुविधाओं/लिखतों का ऋण जोखिम बहुत कम होता है|
आर पी 3 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में सुरक्षा का पर्याप्त स्तर माना जाता है। ऐसी ऋण सुविधाओं/लिखतों का ऋण जोखिम कम होता है|
आर पी 4 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में सुरक्षा का सामान्य स्तर माना जाता है। ऐसी ऋण सुविधाओं/लिखतों का ऋण जोखिम सामान्य होता है|
आर पी 5 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में चूक के कम जोखिम का स्तर माना जाता है।
आर पी 6 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में चूक के उच्च जोखिम का माना जाता है।
आर पी 7 इस प्रतीक वाली ऋण सुविधाओं/लिखतों को वित्तीय दायित्वों की समय पर चुकौती के संबंध में चूक का अत्यधिक स्तर माना जाता है।

अनुबंध 3

निरसित परिपत्रों की सूची

सं. परिपत्र संख्या जारी करने की तारिख विषय
1 बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.67/21.04.048/2016-17 05-05-2017 दबावग्रस्त आस्तियों के समाधान के लिए समय-सीमाएं
2 बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.33/21.04.132/2016-17 10-11-2016 दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना - संशोधन
3 बैंविवि.नं.बीपी.बीसी.34/21.04.132/2016-17 (डीसीसीओ के स्थगन पर अनुदेशों को छोड़कर) 10-11-2016 दबावग्रस्त आस्तियों के लिए योजनाएं - संशोधन
4 बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.103/21.04.132/2015-16 13-06-2016 दबावग्रस्त आस्तियों की संवहनीय संरचना के लिए योजना
5 बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.82/21.04.132/2015-16 (अनुसूचित जातियों/आरसी को वित्तीय संपत्ति की बिक्री पर भाग ई को छोड़कर) 25-02-2016 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करना – विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा
6 बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.41/21.04.048/2015-16 24-09-2015 उधारकर्ता संस्थाओं (कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना से बाहर) के स्वामित्व में परिवर्तन पर विवेकपूर्ण मानदंड
7 बैंविवि.बीपी.बीसी.सं.39/21.04.132/2015-16 24-09-2015 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी) के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा
8 बैंविवि.सं.बीपी..बीसी.101/21.04.132/2014-15 08-06-2015 कार्यनीतिक ऋण पुनर्रचना योजना
9 बैंविवि.सं.बीपी.बीसी.53/21.04.048/2014-15 15-12-2014 आधारभूत संरचना एवं कोर उद्योगों को दिए गए मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना के ऋणों की लचीली संरचना
10 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.45/21.04.132/2014-15 21-10-2014 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी)के संबंध में दिशानिर्देशों की समीक्षा
11 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.31/21.04.132/2014-15 07-08-2014 परियोजना ऋणों हेतु पुनर्वित्त प्रदान किया जाना
12 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.24/21.04.132/2014-15 15-07-2014 आधारभूत संरचना एवं कोर उद्योगों को दिए गए मौजूदा दीर्घकालिक परियोजना के ऋणों की लचीली संरचना
13 बैंपविवि.नं.बीपी.बीसी.97/21.04.132/2013-14 ('सूचना के प्रसार' पर 'विलफुल डिफॉल्टर्स और गैर-सहकारी उधारकर्ताओं' और अनुच्छेद 9 पर पैराग्राफ 8 को छोड़कर) 26.02.2014 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा – संयुक्‍त ऋणदाता फोरम (जेएलएफ) तथा सुधारात्‍मक कार्रवाई योजना (सीएपी)के संबंध में दिशानिर्देश
14 परिपत्र बैंपविवि.बीपी. बीसी.98/21.04.132
/2013-14
26.02.2014 अर्थव्‍यवस्‍था में दबावग्रस्‍त आस्तियों को सशक्त करने के लिए ढांचा - परियोजना ऋणों का पुनर्वित्तीयन, एनपीए की बिक्री और अन्य विनियामक उपाय
15 बैंपविवि.नं.बीपी.बीसी-99/21.04.048/2012-13 (डीसीसीओ में परिवर्तन पर पैरा 2 को छोड़कर) 30.05.2013 बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा
16 बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.80/21.04.132/2012-13 31.01.2013 बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा पुनर्रचित अग्रिमों के संबंध में प्रकटीकरण अपेक्षाएं
17 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.-63/21.04.048/2012-13 26.11.2012 बैंकों और वित्‍तीय संस्‍थाओं द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देशों की समीक्षा
18 बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.99/21.04.132/2010-11 10.06.2011 बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
19 बैंपविवि.बीपी.बीसी.सं.74/21.04.132/2010-11 19.01.2011 सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को ऋण सहायता
20 बैंपविवि.बीपी.सं.49/21.04.132/2010-11 07.10.2010 बैंकों द्वारा अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
21 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.सं.124/21.04.132/2008-09 17.04.2009 अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
22 बैंपविवि.बीपी.बीसी.121/21.04.132/2008-09 09.04.2009 अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
23 बैंपविवि.बीपी.बीसी.76/21.04.132/2008-09 03.11.2008 अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
24 बैंपविवि.बीपी.बीसी.58/21.04.048/2008-09 13.10.2008 (i) स्वीकृत सीमाओं में ऋण का वितरण (ii) छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) के बकाया का पुनर्गठन
25 बैंपविवि.बीपी.बीसी.37/21.04.132/2008-09 27.08.2008 अग्रिमों की पुनर्रचना पर विवेकपूर्ण दिशानिर्देश
26 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.45/21.0421.04.048/2005-06 10.11.2005 कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना (सीडीआर) तंत्र पर संशोधित दिशानिर्देश
27 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.101/21.01.002/2001-02 09.05.2002 कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना
28 बैंपविवि.सं.बीपी.बीसी.15/21.04.114/2000-2001 23.08.2001 कॉर्पोरेट ऋण पुनर्रचना

1 इस निदेश के प्रयोजन से, ऋणदाताओं का अर्थ अनुच्छेद 3 में दी गई सभी संस्थाएं हैं, जब तक कि अन्यथा विनिर्दिष्ट न किया गया हो।

2 चूक से तात्पर्य ऋण का भुगतान न किए जाने से है(आईबीसी के तहत दी गई परिभाषा के अनुसार), जब देनदार या कार्पोरेट देनदार, जैसा भी मामला हो, द्वारा लिया गया ऋण पूर्णत: या ऋण के किसी भाग या किश्त राशि का एक हिस्सा देय और भुगतान योग्य होने पर भुगतान न किया गया हो।
नकद ऋण जैसी परिक्रामी सुविधाओं के संदर्भ में चूक का अर्थ यह भी होगा कि, उक्त शर्तों पर किसी प्रकार प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, बकाया शेष, मंजूर सीमा या आहरण शक्ति, जो भी कम हो, से लगातार 30 दिनों से ऊपर अधिक बना हुआ है।

3 इन निदेशों में जहां भी बैंकों को संबोधित परिपत्रों का संदर्भ दिया गया है, अनुच्छेद 3 में उल्लिखित अन्य ऋणदाता उनपर लागू संबंधित परिपत्र, यदि कोई हो, का संदर्भ लेंगे।

4 इन दिशानिर्देशों के अधीन संकलित एक्स्पोज़र में ऋणदाताओं के पास के सभी निधि आधारित और गैर निधि आधारित एक्स्पोज़र शामिल होंगे।

5 जिन मामलों में आस्ति पुनर्रचना कंपनी (एआरसी) का संबंधित उधारकर्ता के प्रति एक्सपोजर हो, वे भी आईसीए पर हस्ताक्षर करेंगे और इसके सभी प्रावधानों का पालन करेंगे।

6 परिसमापन मूल्य का अर्थ है संबंधित उधारकर्ता की आस्तियों का अनुमानित वसूली योग्य मूल्य, यदि ऐसे उधारकर्ता को समीक्षा अवधि आरंभ होने की तिथि को परिसमापित किया जाए।

7 पुनर्ररचना एक ऐसी कार्रवाई है जिसके अंतर्गत ऋणदाता द्वारा उधारकर्ता को उनकी वित्तीय समस्या से संबंधित आर्थिक, विधिक कारणों से छूट दी जाती है। पुनर्गठन में आम तौर पर ऋण/प्रतिभूतियों की शर्तों का संशोधन शामिल होता है, जिसमें चुकौती अवधि/पुनर्देय राशि/ब्याज किश्तों की राशि/ऋण सुविधाओं का रोल ओवर; अतिरिक्त ऋण सुविधा की मंजूरी; मौजूदा साख सीमाओं की वृद्धि; और, समझौता निपटान जहां निपटान राशि के भुगतान में तीन महीने से अधिक समय हो आदि शामिल हो सकते हैं।

8 इस संदर्भ में अवशिष्ट ऋण का तात्पर्य प्रस्तावित आरपी के अनुसार सभी ऋणदाताओं द्वारा धारित करने के लिए परिकल्पित समग्र ऋण (निधि आधारित और गैर निधि आधारित) से है।

9 अनुबंध-2 में आरपी चिह्नों की सूची दी गई है, जिसे सीआरए द्वारा आईसीई तथा उसके आशय के रूप में दिया जा सकता है।

10 जिस अवधि में आरपी को अंतिम रूप दिया और कार्यान्वित किया जा रहा है, उसमें सामान्य आस्ति वर्गीकरण मानक लागू होंगे, जो इस परिपत्र में दिए गए अनुसार अतिरिक्त प्रावधानीकरण मानक के अधीन होंगे। आस्ति के पुनर्वर्गीकरण की प्रक्रिया केवल इसलिए नहीं रुकनी चाहिए कि आरपी विचाराधीन है।

11 यह बैंक/बैंकों को आईबीसी के तहत दिवाला फाइल करने के निदेश के अतिरिक्त हो सकता है।

12 "समस्याग्रस्त आस्तियों का विवेकपूर्ण ट्रीटमेंट- अनर्जक एक्सपोजर और छूट की परिभाषा" पर बासल समिति दिशानिर्देशों पर आधारित

13 आईबीसी के तहत किए गए सहित, सभी समाधान योजनाओं पर लागू।

14 संतोषजनक निष्पादन का अर्थ है कि उधारकर्ता इकाई ने संबंधित अवधि के दौरान कभी भी चूक न की हो।

15 बकाया मूलधन ऋण में आरपी के कार्यान्वयन के बाद मौजूद ऋण/ऋण जैसी लिखतों सहित (यथा अपरिवर्ती डिबेंचर,वैकल्पिक रूप से परिवर्ती डिबेंचर, वैकल्पिक रूप से परिवर्ती प्रेफरेंस शेयर, अपरिवर्ती प्रेफरेंस शेयर) सभी ऋण सुविधाएं, शामिल होंगी। केवल इक्विटी और अनिवार्यतः इक्विटी में परिवर्तित होने वाली लिखतों को (जिनमें कोई विकल्प निहित नहीं हो) बकाया मूलधन ऋण के निर्धारण से छूट मिलेगी।

16 ये रेटिंग सीआरए द्वारा दिए गए सामान्य रेटिंग होंगे, न कि आईसीई, जिनका संदर्भ कवरिंग परिपत्र के पैराअनुच्छेद 14 में दिया गया है।

17 आईबीसी के तहत पुनर्रचित खातों के लिए विनिर्दिष्ट अवधि न्यायनिर्णय प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन के अनुसार समाधान योजना के कार्यान्वयन की तिथि से शुरू हुई मानी जाएगी।

18 समयसीमा के भीतर आरपी के विलंबित कार्यान्वयन के लिए अतिरिक्त प्रावधान ढांचे के अनुच्छेद 17-20 के अनुसार होंगे।

19 ये लिखतें, जब तक कि इस परिपत्र में निहित अनुदेशों से असंगत नहीं है दिनांक 1 जुलाई, 2015 को वित्तीय संस्थाओं द्वारा निवेश संविभाग के वर्गीकरण, मूल्यांकन और परिचालन के लिए विवेकपूर्ण मानदंड विषय पर जारी मास्टर परिपत्र में निहित सभी अनुदेशों के अधीन होंगी (समय-समय पर यथा संशोधित)।

20 नए प्रवर्तकों को उक्त अनुच्छेद सं 24(ए), 24(बी) और 24(सी) में निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा।

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